बुधवार, 22 मई 2024

History of Gondal Loksabha

गोंडा: उत्‍तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं। इनमें गोंडा सीट (Gonda Loksabha Election 2024) बेहद मायने रखती है। अंग्रेजों के खिलाफ कभी 1857 के पहले विद्रोह में राजा देवी बख्श सिंह की क्रांति का गवाह रहे गोंडा में मनकापुर राजघराने का सिक्‍का हमेशा से चलता आया है। इस स्‍टेट के वंशज कीर्तिवर्धन सिंह (Kirtivardhan Singh) यहां से वर्तमान सांसद हैं। 
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वह बीजेपी की तरफ से लगातार 2014 और 2019 में विजय हासिल कर चुके हैं। कभी कांग्रेस का गढ़ रही गोंडा सीट मनकापुर रियासत के सियासी वर्चस्व की पहचान है। इस स्टेट के आखिरी शासक राघवेंद्र प्रताप सिंह दो दशक से ज्यादा समय तक कांग्रेस में सक्रिय रहे। 
1937 के बाद से वह लगातार विधानसभा के सदस्य रहे। आजादी के बाद वह सी राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी में शामिल हो गए थे। इसके बाद उनकी विरासत को बेटे आनंद सिंह (Aanand Singh) ने संभाला। उन्‍हें इलाके के लोग अन्नू राजा के रूप में जानते हैं।

पिछले तीन दशकों में मनकापुर स्‍टेट को गोंडा की सियासत के नए राजा यानी बृजभूषण शरण सिंह (Brijbhushan Singh) से दो बार टक्कर मिली। 
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बृजभूषण सिंह ने धीरे-धीरे गोंडा ही नहीं आस-पड़ोस के जिलों में भी अपना रसूख कायम कर लिया। फिलहाल बृजभूषण पड़ोसी बहराइच जिले की कैसरगंज सीट से बीजेपी सांसद हैं। वह भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह पिछले कई महीनों से महिला पहलवानों के यौन शोषण से जुड़े आरोपों का सामना कर रहे हैं। बृजभूषण के बेटे प्रतीक भूषण सिंह 2017 से गोंडा सदर सीट से बीजेपी विधायक हैं।
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1967 में सुचेता कृपलानी बनीं सांसद
आइए गोंडा जिले की सियासत को शुरू से समझते हैं। गोंडा लोकसभा सीट पर पहली बार 1952 में चुनाव हुआ। तब हिंदू महासभा की की शकुंतला नैयर जिले की पहली सांसद चुनी गईं। 1957 के चुनाव में यहां कांग्रेस की एंट्री हो गई। कांग्रेस प्रत्‍याशी दिनेश प्रताप सिंह लोकसभा सदस्‍य बने। 1962 में कांग्रेस ने रामरत्‍न गुप्‍ता को टिकट दिया और वह चुनाव जीतकर सांसद बन गए। 1964 में स्‍वतंत्र पार्टी के एन दांडेकर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 1967 में कांग्रेस ने सुचेता कृपलानी पर दांव लगाया जिन्‍होंने जीत हासिल की।

1971 में मनकापुर राजघराने की एंट्री
1971 में पहली बार मनकापुर स्‍टेट ने लोकसभा चुनाव में अपनी दस्‍तक दी। कांग्रेस ने मनकापुर के कुंवर आनंद सिंह को टिकट दिया। आनंद सिंह जीतकर सांसद बन गए। 1977 की जनता लहर को छोड़कर वह 1980, 1984 और 1989 में भी कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने। 1977 में इस सीट पर भारतीय लोकदल के प्रत्‍याशी सत्‍यदेव सिंह जीते थे। फिर 1991 के राम लहर में बीजेपी की इस सीट पर एंट्री होती है। पार्टी ने लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले बृजभूषण शरण सिंह को मैदान में उतारा। बृजभूषण ने तत्‍कालीन कांग्रेस सांसद आनंद सिंह को करारी शिकस्त दी। बृजभूषण यहीं नहीं थमे। 1996 में उनकी पत्नी केतकी देवी सिंह ने भी आनंद सिंह को मात दी। आनंद सिंह इस चुनाव में सपा प्रत्‍याशी के रूप में उतरे थे। 1998 के लोकसभा चुनाव में सपा ने आनंद सिंह के बेटे कीर्तिवर्धन सिंह को टिकट दे दिया। कीतिवर्धन ने कांटे की लड़ाई में बृजभूषण सिंह हरा दिया। 1999 में एक बार फिर बृजभूषण ने बाजी पलटी और कीर्तिवर्धन सिंह को पटखनी दे दी।

2004 में शुरू हुई ब्राह्मण-ठाकुरों के वर्चस्‍व की जंग
2004 के लोकसभा चुनाव में कीतिवर्धन सिंह पाला बदलकर सपा में चले गए। सपा ने उन्‍हें अपना प्रत्‍याशी बनाया। गोंडा की राजनीति का यह पहला चुनाव था जिसके नतीजों ने जिले में ब्राह्मण-ठाकुरों के वर्चस्व को नया रूप दे दिया। दरअसल, बीजेपी प्रत्‍याशी घनश्‍याम शुक्‍ला की मतदान खत्‍म होने की शाम संदिग्ध हालात में मौत हो गई। चुनावी नतीजों में कीतिवर्धन सिंह फिर जीतकर सांसद बने पर गोंडा की राजनीति बदल चुकी थी। 2009 में बेनी प्रसाद वर्मा कांग्रेस की तरफ से यहां लोकसभा चुनाव लड़ने आए। कीतिवर्धन सिंह बीजेपी में घर वापसी कर चुके थे। बेनी प्रसाद वर्मा के सामने बीजेपी से कीर्तिवर्धन सिंह, सपा के टिकट पर पंडित सिंह और बीएसपी की ओर से रामप्रताप सिंह चुनाव मैदान में थे। बेनी बाबू ने चुनाव में नारा दिया- एक दबाओ, तीन गिराओ। बेनी को इसका फायदा भी मिला और ब्राह्मण वोटों की बदौलत वह कांग्रेस का झंडा बुलंद करने में कामयाब रहे। इस चुनाव से पहले न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर अमर सिंह, बृजभूषण सिंह को बीजेपी से तोड़कर सपा में ले आए थे। वह गोंडा के बगल की कैसरगंज सीट से चुनाव जीत गए। हालांकि 2014 में बृजभूषण फिर बीजेपी में आ गए। 2014 में जब कीर्तिवर्धन सिंह को बीजेपी से टिकट मिला तो कार्यकर्ताओं की बगावत दिखी थी। हालांकि कीर्तिवर्धन ने एक बार फिर जीत हासिल की। 2019 लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने अपना दबदबा बनाए रखा। कीर्तिवर्धन सिंह ने सपा उम्‍मीदवार विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह को लंबे अंतर से मात दी। 2021 में कोरोना के चलते पंडित सिंह का निधन हो गया।
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जातीय गण‍ित समझिए
गोंडा लोकसभा सीट पर ब्राह्मण वोट काफी महत्‍वपूर्ण माना जाता है। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों में दलितों का भी काफी वोट बीजेपी को ट्रांसफर हुआ था। सीट के कुछ इलाके कुर्मी बहुल हैं। ऐसे में उनके वोट को भी पार्टियां नजरअंदाज नहीं कर पाती हैं।

गोंडा नाम कैसे पड़ा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, यहां राजा दशरथ की गायें चरा करती थीं। इस वजह से इसको गोनार्द के नाम से जाना जाता था। बाद में यह नाम बदलते-बदलते गोंडा हो गया। 2011 की जनगणना के मुताबिक गोंडा जिले की आबादी 34 लाख से ज्यादा है। जनकवि अदम गोंडवी यहीं के रहने वाले हैं। उनके गांव का नाम आटा परसपुर है। इसके अलावा काकोरी कांड के नायक क्रांतिकारी राजेंद्र लाहिड़ी को वर्ष 1927 में निर्धारित तारीख से 2 दिन पहले गोंडा जेल में ही फांसी दी गई थी।

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