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मंगलवार, 11 जून 2024

योगी सरकार के इस फैसले पर खुश हुए अखिलेश यादव, कहा- चलो अच्छा है कि...



योगी सरकार के इस फैसले पर खुश हुए अखिलेश यादव, कहा- चलो अच्छा है कि...
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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आज मंगलवार को करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया. वो अब केंद्र की राजनीति करेंगे. योगी सरकार के इस फैसले पर खुश हुए अखिलेश यादव, कहा- चलो अच्छा है कि...

: देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अब दिल्ली की राजनीति का रुख करेंगे. आज मंगलवार को उन्होंने करहल विधानसभा सीट से विधायकी पद से इस्तीफा दिया है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस्तीफा देने के बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के वैकेंसी निकालने के फैसले की तारीफ की और कहा कि चलो अच्छा है. 

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विधायकी से इस्तीफा दे दिया है वहीं यूपी विधानसभा में भी नेता प्रतिपक्ष पद पर भी जल्द किसी अन्य बड़े नेता की नियुक्ति की जाएगी. इन तमाम मुद्दों पर बात करते हुए अखिलेश यादव ने कहा, 2024 में तारीख बदलती है केवल, बाकी सब वैसा ही लग रहा है.

सपा अध्यक्ष ने बताई आगे की रणनीति
उन्होंने कहा कि जैसे अब तक सदन चलते आया है आगे भी बिल्कुल वैसे ही चलेगा. जनता और संविधान के मुद्दे पर हम सरकार को हर मोर्चे पर घेरा जाएगा. लोकसभा चुनाव में मिली जीत का जिक्र करते हुए सपा अध्यक्ष ने कहा कि जैसे ही सदन चलेगा जनता और संविधान के सवाल पर सरकार को घेरा जाएगा. हमारी बहुत दिनों बाद ऐतिहासिक जीत हुई है. हम तीसरे नंबर की पार्टी बन गए हैं, अब देश में हमारी जिम्मेदारी भी बढ़ गई है.

यूपी सरकार द्वारा यूपी में वैकेंसी निकालने की बात पर सपा अध्यक्ष ने खुशी जताई. उन्होंने कहा कि चलो अच्छा है कि कुछ काम जनता के लिए किया जा रहा है. आशा है कुछ दिनों में अग्निवीर पर विचार होगा. वहीं मुस्लिमों को पद देने के सवाल पर उन्होंने कहा कि किसको क्या दिया गया है पद ये सवाल नहीं है. जिसको मिला है वो क्या है. अखिलेश यादव ने इस दौरान मणिपुर के मुद्दे को भी उठाया और कहा, वहां की जनता के अधिकारों को और अधिकार के लिए सरकार को जल्द से जल्द कदम उठाने चाहिए.
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सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव यूपी की कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव जीते हैं, जिसके बाद अब उन्होंने राज्य की राजनीति से आगे बढ़ केंद्र की राजनीति की ओर अपना कदम बढ़ा दिया है. इस बार सपा की भूमिका इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि कांग्रेस के बाद सपा दूसरे नंबर की विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है

मंगलवार, 4 जून 2024

गोंडा और कैसरगंज में कायम रहा भाजपा का दबदबा

गोंडाः धार्मिक नगर अयोध्या से सटा गोंडा लोकसभा सीट पुरातात्विक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों से समृद्ध हैं. गोंडा में आस्था व इतिहास का अनूठा संगम देखने को मिलता है. गोंडा में महाबली भीम द्वारा स्थापित पृथ्वी नाथ मंदिर, झालीधाम मंदिर जहां कामधेनु गाय दिखाई पड़ती है और स्वामी नारायण छपिया मंदिर के लिए प्रसिद्ध है. गोंडा नानाजी देशमुख की कर्मस्थली भी रही है. गोंडा से इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से कीर्तिवर्धन सिंह उम्मीदवार हैं. इस सीट की मतगणना पूरी हो चुकी है. यहां पर भाजपा के उम्मीदवार कीर्तिवर्धन सिंह ने जीत दर्ज कर ली है. कीर्तिवर्धन ने समाजवादी पार्टी की श्रेया वर्मा को भारी मतों से मात दी है.


2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो कुल 15 उम्मीदवार थे. यहां पर बीजेपी की तरफ से कीर्तिवर्धन सिंह मैदान में थे. वहीं कांग्रेस ने कृष्णा पटेल को टिकट दिया था. सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन के तहत ये सीट सपा के खाते में आई थी. समाजवादी पार्टी से विनोद कुमार को टिकट दिया था. इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार कीर्ति वर्धन सिंह अपनी जीत को बरकरार रखा था. 2014 में भी कीर्तिवर्धन सिंह ने सपा उम्मीदवार नंदिता शुक्ला को हराया था. कीर्तिवर्धन को कुल पड़े वोटों में से 3 लाख 59 हजार 643 वोट मिले थे. जबकि नंदिता को केवल 1 लाख 99 हजार 227 वोट मिले थे. कीर्तिवर्धन ने 1 लाख 60 हजार 416 वोटों के अंतर से यह चुनाव जीता था. वहीं कांग्रेस के उम्मीदवार और कद्दावर नेता बेनी प्रसाद वर्मा को भारी झटका लगा था

कैसरगंज लोकसभा सीट पर भारी मतों के साथ भारतीय जनता पार्टी के नेता करणभूषण सिंह जीत गए हैं। भारतीय जनता पार्टी के ब्रजभूषण सिंह के बेटे करणभूषण सिंह ने 1 लाख 48 हजार 8 सौ 43 वोटों से जीत हासिल की। उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी भगत राम मिश्रा को हराया। बता दें कि बहुजन समाज पार्टी ने नरेंद्र पांडे को टिकट देकर मुकाबले को त्रिकोणीय खथी। लेकिन अंत में जीत बीजेपी को हासिल हुई।




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 लोकसभा चुनाव परिणाम 2024 
 तीसरी बार बनेगी मोदी सरकार या कांग्रेस का होगा बेड़ा पार? किसे दिल्ली की कुर्सी दिलाएगा उत्तर प्रदेश? बिहार में तेजस्वी करेंगे कमाल या बीजेपी संग नीतीश मचाएंगे धमाल?

 
एक नजर कैसरगंज लोकसभा सीट पर
कैसरगंज लोकसभा सीट काफी लंबे समय से सुर्खियों में बनी हुई है। भारतीय जनता पार्टी ने यहां पिछले दो लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज की है, इस चुनाव में भी विजय पताका फहराकर बीजेपी हैट्रिक लगाने की जुगत में जुटी हुई है। बात अगर समाजवादी पार्टी की करें तो वह सीट से जीत दर्ज कर अपनी साख बचाने में लगी हुई है।

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साल 2019 में कैसरगंज लोकसभा सीट का परिणाम 
2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो यहां पर मुकाबला एकतरफा हुआ था। चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की तरफ से बृजभूषण शरण सिंह मैदान में उतरे थे। वहीं, बहुजन समाज पार्टी ने चंद्रदेव राम यादव को टिकट दिया था। इलेक्शन में बसपा और समाजवादी पार्टी का गठबंधन था। बृजभूषण सिंह को 581,358 वोट मिले तो चंद्रदेव राम यादव के खाते में 319,757 वोट आए थे। कांग्रेस की स्थिति काफी नाजुक रही और पार्टी के विनय कुमार पांडे को महज 37,132 वोट मिले थे। चुनाव में बृजभूषण शरण सिंह ने 261,601 के वोटों के अंतर से अपने प्रतिद्वंदी से जीत हासिल की थी।

  तीसरी बार मोदी सरकार या इस बार कांग्रेस का बेड़ा पार? थोड़ी देर में शुरू होगी मतगणना

पार्टी प्रत्याशी वोट
बीजेपी बृजभूषण शरण सिंह 581,358
बहुजन समाज पार्टी चंद्रदेव राम यादव 319,757
कांग्रेस विनय कुमार पांडे 37,132

2014 के लोकसभा इलेक्शन में देश में मोदी लहर का असर दिखाई दिया। समाजवादी पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में आए बृजभूषण शरण सिंह यहां से मैदान में उतरे और 3,81,500 वोट हासिल किए। उन्होंने समाजवादी पार्टी के विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह को 78,218 मतों के अंतर से हरा दिया। बसपा उम्मीदवार कृष्ण कुमार ओझा को 1,46,726 वोट मिले और वह तीसरे नंबर पर रहे।
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पार्टी प्रत्याशी वोट
बीजेपी बृजभूषण शरण सिंह 3,81,500
समाजवादी पार्टी विनोद कुमार सिंह 303,282
बहुजन समाज पार्टी कृष्ण कुमार ओझा 1,46,726
कैसरगंज लोकसभा सीट का इतिहास
कैसरगंज लोकसभा सीट के राजनीतिक आंकड़ें भी काफी दिलचस्प रहे हैं। 1952 में नेहरू के करीबी रहे सरदार जोगेंद्र सिंह यहां चुनाव जीतने में कामयाब रहे। वहीं, 1977 से लेकर 2014 के दौरान यहां से 5 बार समाजवादी पार्टी, 3 बार बीजेपी, 2 बार कांग्रेस और एक बार भारतीय लोकदल के उम्मीदवार को जीत हासिल हुई। राना वीर सिंह और रुद्रसेन चौधरी से लेकर बेनी प्रसाद वर्मा यहां से चुने गए। सातवीं और आठवीं लोकसभा में राना वीर सिंह ने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। वहीं, जनता लहर में रुद्रसेन चौधरी ने कामयाबी पाई। 1989 में भी वह जीतने में सफल रहे। 90 के दशक में कैसरगंज मुलायम सिंह यादव के सबसे करीबी रहे बेनी प्रसाद वर्मा की संसदीय सीट के रूप में चर्चा में आया। बेनी ने ही समाजवादी पार्टी का नामकरण किया था। 1996, 1998, 1999 और 2004 लगातार 4 बार बेनी बाबू इस सीट से सांसद निर्वाचित हुए।
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2004 में बेनी ने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे आरिफ मोहम्मद खान को करारी शिकस्त दी। 1996 से 1998 के दौरान वह केंद्रीय संचार मंत्री के पद पर रहे। हालांकि, 2007 में बेनी ने मुलायम का साथ छोड़ दिया और अगले साल कांग्रेस के हाथ के साथ चले गए। 2009 में गोंडा से सांसद चुने जाने के बाद यूपीए सरकार में उन्हें इस्पात मंत्री की जिम्मेदारी भी मिली। 2009 के परिसीमन में कैसरगंज सीट का बाराबंकी वाला हिस्सा कट गया और इसमें गोंडा के इलाके आ गए। यही वजह रही कि 2008 में न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर बीजेपी छोड़कर एसपी में आने वाले बृजभूषण शरण सिंह ने 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां से ताल ठोकी।

बृजभूषण शरण सिंह ने इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार सुरेंद्र नाथ अवस्थी उर्फ पुत्तू भैया को मात दी। हालांकि, 2014 का लोकसभा इलेक्शन आते-आते बृजभूषण सिंह दोबारा से भगवा खेमे में लौटकर वापस आ गए। मोदी लहर में वह एक बार फिर चुनाव जीतने में कामयाब रहे। इस बार उन्होंने अपने चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वी विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह को करारी शिकस्त दी। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने चंद्रदेव राम यादव को पराजित किया था।

कैसरगंज लोकसभा सीट का जातीय समीकरण
कैसरगंज लोकसभा सीट पर 18.80 लाख मतदाता है। इसमें से 9.96 लाख पुरुष और 8.84 लाख महिला मतदाता हैं। कैसरगंज के कुछ इलाकों में राजपूत समुदाय की संख्या काफी है। वहीं, गोंडा की तीन विधानसभा सीटों पर ब्राह्मणों की संख्या भी काफी अच्छी मात्रा में है। इस लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम वोटर्स की संख्या भी अच्छी-खासी है। 2011 जनगणना के मुताबिक कैसरगंज तहसील में 3 लाख से ज्यादा मुस्लिम आबादी है।
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बुधवार, 29 मई 2024

बिहार के काराकाट लोक सभा क्षेत्र में गरजे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह

राजनाथ सिंह ने बिहार के काराकाट लोकसभा क्षेत्र में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस और उसके सहयोगी राजद पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि लालटेन का तेल खत्म हो गया है और जल्द ही कांग्रेस भी डायनासोर की तरह विलुप्त हो जाएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की मुफ्त राशन योजना के तहत लोगों को उनकी खपत से अधिक खाद्यान्न मिल रहा है और देश में खाद्य मुद्रास्फीति दर दुनिया में सबसे कम है।
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सिंह ने कहा कि भाजपा सेवा की भावना के साथ राजनीति करती है और लोगों को धोखा देने की कोशिश नहीं करती। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनके शासन में भारत अब कमजोर देश के रूप में नहीं देखा जाता और पाकिस्तान अब आतंकवादियों को भेजने की हिम्मत नहीं करता। उन्होंने अनुच्छेद 370 को खत्म करने और तीन तलाक के खिलाफ कानून लाने के लिए भी सरकार की सराहना की। 

सिंह ने यह भी कहा कि 70 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को आयुष्मान योजना के तहत मुफ्त चिकित्सा उपचार मिलेगा और मोदी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में ही इसे मंजूरी दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि भाजपा सभी सामाजिक वर्गों के कल्याण के लिए काम करती है और वोटों की परवाह किए बिना नीतियां बनाती है।
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रविवार, 26 मई 2024

 BSP के ब्राह्मण प्रत्याशी बिगाड़ सकते हैं भाजपा का खेल, किन सीटों पर फंसा पेंच?



2007 में मायावती ने कैसे हासिल की थी सत्ता?

मायावती ने उत्तर प्रदेश की कई ऐसी सीटों पर ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारा है, जो बीजेपी के समीकरण को बिगाड़ रहे हैं।
बसपा चीफ मायावती ने कई सीटों पर ब्राह्मण प्रत्याशी खड़े करके बीजेपी को मुसीबत में डाल दिया है।
बसपा प्रमुख मायावती ने जीत की संभावना को देखते हुए लोकसभा चुनाव में कई उच्च जाति और मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।
 बसपा प्रमुख की रणनीति उनके 2007 के सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले की याद दिलाता है। यह वह फार्मूला था जब इसी के बल पर मायावती उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई थीं, हालांकि, यह 2024 का लोकसभा चुनाव है, लेकिन फिर भी बसपा प्रमुख की रणनीति और उसके ब्राह्मण उम्मीदवार कहीं ना कहीं भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं। आईए जानते हैं ऐसी ही कुछ सीटों पर क्या स्थिति है जहां पर बसपा ने अपने ब्राह्मण उम्मीदवार उतार कर बीजेपी के लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी।
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ऐसे में हम बात उन प्रमुख लोकसभा सीटों की करते हैं जहां बसपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे हैं, वे सीटें हैं- फर्रुखाबाद, बांदा, धौरहरा, अयोध्या, बस्ती, अलीगढ़, उन्नाव, मिर्जापुर, फतेहपुर सीकरी, और अकबरपुर शामिल हैं।

 
अयोध्या-फैजाबाद से बसपा ने सच्चिदानंद पांडे को उतारा
अयोध्या लोकसभा सीट की बात करें तो यहां से बसपा ने सच्चिदानंद पांडे को मैदान में उतारा है, जबकि समाजवादी पार्टी ने अवधेश पासी और बीजेपी ने एक बार फिर लल्लू सिंह पर दांव खेला।

बसपा प्रत्याशी सच्चिदानंद पांडे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भाजपा के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे थे और इसी साल मार्च में बसपा में यह कहते हुए शामिल हुए कि भाजपा में उन्हें घुटन महसूस हो रही थी।

 
ऐसे में कहा जा सकता है कि बसपा प्रत्याशी सच्चिदानंद पांडे, भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह का खेल बिगाड़ सकते हैं। जिससे उन्हें पराजय का भी सामना करना पड़ सकता है।
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बता दें, लल्लू सिंह ने जहां 2014 में 2,82,775 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी वहीं 2019 में समाजवादी पार्टी उम्मीदवार से उनकी जीत का अंतर महज 65,000 रह गया था।
 यानी भाजपा के 5 लाख से ज्यादा वोट की तुलना में समाजवादी पार्टी को 4,63,544 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे थे।
अयोध्या-फैजाबाद लोकसभा सीट के महत्व को भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व भी पूरी तरजीह दे रहा है, क्योंकि फैजाबाद की प्रतिष्ठित सीट हार जाने से पार्टी के मनोबल को बड़ा झटका लग सकता है। 
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले वहां पर राम मंदिर के दर्शन के बाद भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ एक खुली जीत में रोड शो किया था।

इस बारे में लल्लू सिंह ने कहा था कि 500 वर्षों से राम मंदिर बनवाने की जो लड़ाई थी वह प्रधानमंत्री मोदी जी की लीडरशिप में पूरी हुई है।
 फैजाबाद अयोध्या के सभी मतदाता देख रहे हैं कि सीएम योगी जी ने यहां कितना विकास किया है और न सिर्फ यहां, बल्कि पूरे देश में भाजपा अपनी छाप छोड़ रही है।

अयोध्या सीट से इस बार अखिलेश यादव ने नया प्रयोग किया और सामान्य सीट होने के बावजूद समाजवादी पार्टी ने दलित उम्मीदवार दिया है। 
अयोध्या की सबसे अधिक आबादी वाली पासी बिरादरी से उम्मीदवार दिया, जो दलित वर्ग में आती है। सपा ने छह बार के विधायक, मंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे अपने सबसे मजबूत पासी चेहरे अवधेश पासी को चुनाव मैदान में उतारा।

बता दें, लल्लू सिंह के संविधान को लेकर एक बयान पर हंगामा भी खड़ा हो गया था और पूरे विपक्ष को भाजपा के खिलाफ एक मुद्दा मिल गया था। लल्लू ने कहा था कि 400 सीट इसलिए चाहिए, क्योंकि मोदी सरकार को संविधान बदलना है। सपा के दलित उम्मीदवार उतारने से एक नारा चल पड़ा। 'अयोध्या में मथुरा न काशी, सिर्फ अवधेश पासी'। लल्लू के बयान से अखिलेश के दलितों से राम की नगरी अयोध्या में फाइट टाइट हो गई है।
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फर्रुखाबाद में भी बसपा ने उतारा ब्राह्मण प्रत्याशी
फर्रुखाबाद लोकसभा सीट की बात करें तो भाजपा ने यहां से एक बार फिर मुकेश राजपूत को मैदान में उतारा है। मुकेश राजपूत अगर इस बार चुनाव जीतते हैं तो यह उनकी हैट्रिक होगी। 
वहीं सपा ने डॉक्टर नवल किशोर शाक्य को उतारा है, लेकिन बीजेपी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत इस चुनाव में बसपा ने ब्राह्मण कार्ड खेल कर पैदा कर दी है। 
बसपा प्रमुख मायावती ने यहां से क्रांति पांडे को टिकट देकर मुकेश राजपूत की राह में एक बड़ा रोड़ा खड़ा कर दिया है, जिसकी वजह से सदर का ब्राह्मण वोट क्रांति पांडे के पक्ष में और कुछ नवल किशोर शाक्य के साथ हो गया था,जो सपा को फायदा पहुंचाएगा।

दूसरी वजह यह भी है कि फर्रुखाबाद सदर का ब्राह्मण मतदाता बसपा नेता अनुपम दुबे पर की कई कार्रवाई से नाखुश है। 
उसका शुरू से कहना रहा है कि वह मुकेश राजपूत के समर्थन में वोट नहीं करेगा।
 अगर ऐसा हुआ है तो यह बीजेपी प्रत्याशी के लिए एक चिंता का विषय होगा, जो सपा प्रत्याशी को यानी कि डॉक्टर नवल किशोर शाक्य को फायदा पहुंचाएगा।

बता दें, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी मुकेश राजपूत को 5,69,880 वोट मिले थे, जबकि सपा प्रत्याशी मनोज अग्रवाल को 3,48,178 वोटों पर संतोष करना पड़ा था। वहीं तीसरे नंबर पर कांग्रेस के सलमान खुर्शीद को मात्र 55,258 वोट मिले थे।

फर्रुखाबाद 2014 लोकसभा चुनाव की बात करें तो यहां से मुकेश राजपूत ने जीत दर्ज की थी। उनको 4,06195 वोट, जबकि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रामेश्वर यादव को 2,55,693 वोट और बसपा प्रत्याशी जयवीर सिंह को 1,14521 मत प्राप्त हुए थे।

यहां से करीब 40 साल बाद पहला ऐसा मौका है जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद का परिवार मैदान से बाहर है।

फर्रुखाबाद लोक सभा सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी। इस सीट पर आठ बार कांग्रेस चुनाव जीत चुकी है। 
वहीं चार बार भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की है, जबकि दो बार समाजवादी पार्टी और दो बार जनता पार्टी ने भी सीट से चुनाव जीता है एक बार जनता दल और एक बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने भी इस सीट से जीत हासिल की है।

बांदा-चित्रकूट लोकसभा पर फंसी बीजेपी की सीट
बांदा चित्रकूट लोकसभा चुनाव की बात करें तो यहां पर भाजपा ने एक बार फिर सांसद आरके सिंह पटेल पर दांव खेला है। 
आरके सिंह पटेल का टिकट फाइनल होने के बाद ब्राह्मण नेताओं में काफी नाराजगी की देखी गई थी, जो अंतिम समय यानी वोटिंग के वक्त तक जारी रही। 
हालांकि, ब्राह्मणों की नाराजगी को खत्म करने के लिए बृजेश पाठक ने बांदा चित्रकूट में कई दिनों तक डेरा डाला था।

नाराजगी को भांपते हुए बीजेपी हाई कमान ने मौजूदा कन्नौज सांसद और भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक और कानपुर से बीजेपी प्रत्याशी रमेश अवस्थी को भेजा था। जो लगातार बांदा-चित्रकूट में ब्राह्मणों को बीजेपी के पक्ष में साधने कोशिश करते हुए देखे गए थे।

हालांकि, यह कितना कारगर साबित होता है, यह तो 4 जून को ही पता चलेगा, लेकिन यहां से बसपा ने ब्राह्मण कार्ड खेलकर बीजेपी की मुश्किलों में इजाफा कर दिया है। बसपा ने बांदा चित्रकूट लोकसभा सीट से मंयक द्विवेदी को मैदान में उतारा है। 
ऐसे में कहा जा रहा है कि ब्राह्मण मतदाता मयंक द्विवेदी के साथ गया है, जो भाजपा प्रत्याशी के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं है। 
वहीं सपा ने यहां से कृष्णा पटेल को मैदान में उतारा है। इस लिहाज से यहां मामला त्रिकोणीय हो रहा है, लेकिन बसपा की तरफ से ब्राह्मण प्रत्याशी मयंक द्विवेदी के आने से भाजपा को नुकसान होता दिखाई दे रहा है।
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मयंक द्विवेदी पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं। मयंक के पिता नरेश द्विवेदी नरैनी विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं। 
वो मौजूदा समय में जिला पंचायत सदस्य हैं। उनको बसपा वोटों के अलावा सजातीय वोटों के मिलने की उम्मीद है।
वहीं आरके सिंह पटेल चित्रकूट के रहने वाले हैं। वो दूसरी बार बीजेपी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे हैं। वह 2009 में सपा के सिंबल पर चुनाव लड़कर सांसद बने थे। इसके बाद उन्होंने पाला बदला और बसपा का दामन थाम लिया। इसके बाद मोदी लहर में 2014 में वह भाजपा में शामिल हो गए।

बांदा-चित्रकूट लोकसभा सीट में पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। जिनमें बबेरू, नरैनी, बांदा, चित्रकूट और मानिकपुर शामिल है। इनमें से दो सपा के पास और दो बीजेपी के खाते में हैं, जबकि एक सीट मानिकपुर पर अपना दल का कब्जा है। बबेरू से विशंभर सिंह यादव, चित्रकूट से अनिल प्रधान पटेल सपा के विधायक हैं, जबकि नरैनी से ओम मणि वर्मा, बांदा से प्रकाश द्विवेदी बीजेपी के विधायक हैं।

2007 का यूपी विधानसभा चुनाव
अगर हम यूपी के 2007 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो यूपी के 2007 के विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले 9 अक्टूबर 2006 को बसपा के संस्थापक और मायावती के राजनीतिक गुरु कांशीराम की मृत्यु हो गई थी। कांशीराम के घर वालों ने उनकी मौत के लिए मायावती को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने मायावती पर कांशीराम से नहीं मिलने देने का आरोप भी लगाया था।

कांशीराम की मौत के बाद मायावती पूरी तरह बसपा की सर्वेसर्वा हो चुकी थीं। तीन बार थोड़े-थोड़े समय तक मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती भी शायद अब तक प्रदेश के जीत के गणित को काफी हद तक समझ चुकी थी। उन्होंने कांशीराम के दलित और अल्पसंख्यक से राजनीतिक ताकत हासिल करने के फार्मूले को बदलते हुए सर्व समाज का नारा दिया।

ब्राह्मण पर हमला करने वाली मायावती ने बड़ी संख्या में ब्राह्मणों को टिकट दिए। मायावती की यह नई सोशल इंजीनियरिंग रंग लाई। मायावती ने कांशीराम का फॉर्मूला बदल दिया, लेकिन बसपा को अपने दम पर सत्ता में लाने का सपना तो पूरा कर दिया। लगभग 22 साल की उम्र पूरी कर रही बसपा ने 206 सीटें जीतीं। प्रदेश में 1991 के बाद यानी 16 वर्षों के बाद मायावती के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी थी।

मायावती ने 2007 को प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर सत्ता हासिल की। इसके साथ ही राजनीतिक स्थिरता और जोड़-तोड़ से सरकार बनाने का दौर खत्म हुआ।पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था। इस चुनाव ने प्रदेश को स्थिर सरकार दी थी
उस वक्त कहा जाने लगा था कि कांशीराम ने बसपा को राजनीति से ब्राह्मणवाद मिटाने के नारे और दलितों को सत्ता का नेतृत्व का संकल्प लिया था। लेकिन उसी पार्टी ने सत्ता हासिल करने के लिए ब्राह्मणों को लुभाने के लिए हर कोशिश की।

2007 में 86 ब्राह्मणों को मायावती ने दिया था टिकट
2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा के प्रत्याशियों पर नजर दौड़ाएं तो उस वक्त मायावती ने 86 ब्राह्मण प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था। इसमें तीन दर्जन से ज्यादा जीते। बसपा ने 139 सीटों पर सवर्णों को प्रत्याशी बनाया था। इनमें 36 ठाकुर और अगड़ों में अलग-अलग जातियों के 17 अन्य उम्मीदवार थे। इसके अलावा पिछड़ों को 114, मुस्लिमों को 61 और दलितों को 89 टिकट दिए गए थे। जो मायावती के सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को सही साबित करते थे और यही वजह थी कि 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में मायावती सत्ता के सिंहासन पर काबिज हुईं थीं।
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शुक्रवार, 24 मई 2024

BJP ने राज्यपाल को सम्बंधित ज्ञापन डी एम को सौंपा

भारतीय जनता पार्टी ने शुक्रवार को राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा‌ । ज्ञापन में ममता सरकार के धार्मिक आधार पर गिए गए आरक्षण को निरस्त करने के कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन कराने की मांग की गयी है‌। भाजपा जिलाध्यक्ष अमर किशोर कश्यप बम बम ने कहा कि पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने ओबीसी आरक्षण धार्मिक आधार देने का फैसला किया था जिसे कोलकाता हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है। 
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भाजपा कार्यकर्ताओं ने कोर्ट के फैसले पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि ममता सरकार के फैसले को हाई-कोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए स्पष्ट निर्देश जारी किया है लेकिन ममता बनर्जी सरकार का अड़ियल रवैया ओबीसी वर्ग व संविधान के विपरीत है। भाजपा कार्यकर्ताओं ने राज्यपाल को ज्ञापन सौंपकर हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन कराने की मांग की है‌। 

इस मौके पर जिलाध्यक्ष अमर किशोर कश्यप, जिलाध्यक्ष ओबीसी मोर्चा प्रिंस चौरसिया, क्षेत्रीय मंत्री रंजीत बाबा व भूपेंद्र आर्य, विनोद यादव, शेष चौरसिया राम गोपाल साहू, मनोज विश्वकर्मा, संतोष चौरसिया, धर्मेन्द्र चौहान, अनूप जायसवाल, दिनेश प्रजापति व ओबीसी मोर्चा के वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित रहे।
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सिपाही से बाबा बने हत्यारे हरि का साम्राज्य   नारायण हरि साकार।

ढोंगी बाबाओं की श्रृंखला में एक नाम और शुमार हो गया।  नारायण हरि साकार।  यह हत्यारा बाबा रातों-रात नहीं खड़ा हो गया कि एक दिन में इसका सौ करो...