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रविवार, 26 मई 2024

शुरू हो गया ज्येष्ठ माह, बड़ा मंगल पर इस विधि से करें बजरंगबली की पूजा, जानें क्यों कहते हैं बुढ़वा मंगल


शुरू हो गया ज्येष्ठ माह, बड़ा मंगल पर इस विधि से करें बजरंगबली की पूजा, जानें क्यों कहते हैं बुढ़वा मंगल?
 ज्येष्ठ माह में बड़ा मंगल का विशेष महत्व बताया गया है. इस दौरान की गई हनुमान जी की पूजा विशेस फल कार क है 

पहला बड़ा मंगल 28 मई को पड़ रहा है.
ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले हर मंगलवार को बड़ा मंगल कहा जाता है.
 इस वर्ष ज्येष्ठ माह की शुरुआत 24 मई 2024 से हो चुकी है. ज्येष्ठ के महीने में आने वाले सभी मंगलवार को बुढ़वा मंगल या बड़ा मंगल के नाम से जाना जाता है. इस दौरान हनुमान जी की विधि विधान से पूजा अर्चना करना बहुत शुभ और फलदाई माना गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति ज्येष्ठ माह के सभी मंगलवार पर बजरंगबली की पूजा करते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं तो उनके सभी काम पूरे होने लगते हैं और उन्हें हर तरह के कष्टों से मुक्ति मिलने लगती है. बड़ा मंगल की पूजा विधि बता रहे हैं दिल्ली निवासी ज्योतिष आचार्य  ब्र जेश सिंह 


क्यों कहते हैं बड़ा या बुढ़वा मंगल?
हिंदू पंचांग के अनुसार पहला बड़ा मंगल 28 मई को पड़ रहा है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ज्येष्ठ का तात्पर्य बड़े से है और ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले हर मंगलवार को बड़ा मंगल या बुढ़वा मंगल कहा जाता है.











पूजा सामग्री
बड़ा मंगल पर हनुमान जी की पूजा करने के लिए सबसे पहले हनुमान जी की प्रतिमा की आवश्यकता होती है. इसके अलावा दूध, घी, शहद, लाल रंग का कपड़ा, गंगाजल, चरण पादुका, धूप, दीप, माला, चंदन, अगरबत्ती, पान का पत्ता, सिंदूर, मिठाई, कपूर और सुपारी लें.


इस विधि से करें पूजा
ज्येष्ठ माह के मंगलवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि निवृत हो जाएं और हनुमान जी की प्रतिमा को एक लाल रंग के साफ कपड़े पर विराजमान करें. इसके बाद गंगाजल, दूध, दही, शहद और चंदन से स्नान कराएं. अब हनुमान जी को सिंदूर लगाएं.
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हनुमान जी की पूजा अगर पुरुष कर रहे हैं तो पूरे शरीर में सिंदूर लगाएं और स्त्री कर रही है तो सिर्फ चरणों में लगाएं.

इसके बाद हनुमान जी को लाल वस्त्र पहनाकर फल, फूल, मिठाई, पान का पत्ता अर्पित करें और माला पहनाकर चरण पादुका पहनाएं.


अब हनुमान जी के समक्ष घी का चौमुखी दीपक जलाकर धूप या अगरबत्ती जलाएं और इसे पीपल के पेड़ के पास रख आएं. अब हनुमान जी को बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं.


अंत में हनुमान जी के मंत्रों का जाप करें. हनुमान चालीसा का पाठ करें और आरती करने के बाद हनुमान जी के समक्ष लगे भोग को परिवार के लोगों में प्रसाद के रूप में वितरित करें.
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शुक्रवार, 24 मई 2024

महाभारत के युद्ध के लिए श्रीकृष्ण ने पूरे भारत में कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना?


महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक कुरुक्षेत्र की भूमि पर लड़ा गया था 
लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाभारत का 18 दिनों तक चलने वाला युद्ध आखिर   क्यों 
कुरुक्षेत्र मे ही 
लड़ा गया था। 
श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र को ही रक्तरंजित युद्ध के लिए क्यों चुना था? आइए, जानते हैं इससे जुड़ी कहानी।
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महाभारत के युद्ध का जब भी जिक्र आता है, तो कुरुक्षेत्र की रक्तरंजित भूमि का जिक्र जरूर होता है। 
महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक कुरुक्षेत्र की भूमि पर लड़ा गया था। महाभारत काल में कुरुक्षेत्र को कई नामों से जाना जाता है। 
कई पुराणों में कुरुक्षेत्र को ब्रह्मवर्त, थानेसर, स्थानेश्वर नामों से भी जाना जाता है।
 महाभारत में कुरु को पांडवों और कौरवों का वंशज तथा पांडु का पूर्वज बताया गया है, जिस पर कुरुक्षेत्र का नाम रखा गया। आमतौर पर सभी लोगों के मन में सवाल आता है कि श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए आखिर कुरुक्षेत्र की भूमि को ही क्यों चुना। 
आइए, जानते हैं-
महाभारत के युद्ध के लिए श्रीकृष्ण ने पूरे भारत में कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना, इससे जुड़ी घटना जानकर हर इंसान की आत्मा कांप जाती है




​दो भाईयों के बीच रक्तरंजित युद्ध



महाभारत से जुड़ी एक पौराणिक कहानी के अनुसार जब पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध की घोषणा हुई, तो भगवान श्रीकृष्ण ने अपने कई दूतों को कई जगहों पर भेजा और महाभारत के युद्ध के लिए कोई भूमि ढूंढ़ने के लिए कहा।
 श्रीकृष्ण जानते थे कि महाभारत का युद्ध बहुत ही भीषण और रक्तरंजित होने वाला है, इसलिए उन्हें ऐसी भूमि की तलाश थी, जो युद्ध की क्रूरता को सह सके। ऐसे में कई दूतों ने श्रीकृष्ण को कई जगहों के बारे में बताया लेकिन उनमें से एक दूत जब श्रीकृष्ण के पास आया, तो वे बहुत उदास और अत्यंत पीड़ा में था।


दूत ने श्रीकृष्ण को बताई कुरुक्षेत्र की कहानी
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जब श्रीकृष्ण ने दूत को इतनी दयनीय अवस्था में देखा, तो उन्होंने दूत से इसका कारण पूछा।
 दूत ने कुरुक्षेत्र में घटी एक घटना बताई, जिसके अनुसार दो भाइयों के बीच खेत में मेड़ बनाने को लेकर झगड़ा था। दोनों ने एक खेत में बंटवारा किया हुआ था। 
सिंचाई का पानी ज्यादा न पहुंचे, इसलिए दोनों ने बीच में मेड़ बनाई हुई थी। एक दिन यह मेड़ टूट गई, जिससे दोनों भाइयों के बीच लड़ाई हो गई। धीरे-धीरे यह लड़ाई इतनी ज्यादा बढ़ गई कि दोनों भाइयों के बीच हाथापाई होने लगी। 
मार-पीट इतनी रक्तरंजित युद्ध में बदल गई कि बड़े भाई ने छोटे भाई की हत्या कर दी और उसके शव को घसीटकर मेड़ बनाने की जगह पर रखकर उससे ही सिंचाई का पानी रोक दिया। इस 


​सच्ची कहानी को सुनकर श्रीकृष्ण भी पीड़ा से भर गए

जब श्रीकृष्ण ने दूत की बताई यह कहानी सुनी, तो उन्होंने बहुत पीड़ा हुई लेकिन उन्होंने समय को देखते हुए कहा कि जिस भूमि पर भाई-भाई के बीच इतना द्वेष है। 
वह स्थान युद्ध के लिए सही है क्योंकि यहां की भूमि में ही इतनी कठोरता है कि चाहकर भी किसी का मन द्रवित नहीं हो सकता। श्रीकृष्ण को इस बात की शंका थी कि कहीं पांडव कौरवों के दबाव में आकर कोई संधि न कर लें, इसलिए महाभारत का युद्ध अनिवार्य बन गया था क्योंकि इस युद्ध से बड़ा बदलाव जुड़ा हुआ था।
 इस कारण श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की भूमि को युद्ध के लिए चुना।


​कुरु भूमि को माना गया न्याय का प्रतीक




कुरुक्षेत्र की रक्तरंजित भूमि को महाभारत के युद्ध के लिए चुने जाने से जुड़ीं कई अन्य कहानियां भी हैं लेकिन यह कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित है। 
कुरुक्षेत्र की भूमि पर इतना भीषण रक्तरंजित युद्ध हुआ था, इस बारे में जब श्रीकृष्ण से देवताओं ने सवाल किया कि इस भूमि पर कौन ही बसना चाहेगा और युगों-युगों तक इस भूमि को किसी काल की तरह देखा जाएगा, जिसने एक साथ लाखों मानवों का रक्त पिया हो।
 यह सुनकर श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की भूमि को शाप मुक्त करने के लिए यज्ञ करने का तरीका बताया और कहा कि कुरुक्षेत्र में आकर जो भी सच्चे मन से अपने पूर्वजों का तर्पण करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी क्योंकि इस भूमि पर न्याय और अन्याय के बीच युद्ध हुआ था। 
इसी कारण से यह भूमि अन्याय की समाप्ति के लिए याद रखी जाएगी।


​महाभारत के वनपर्व के अनुसार कुरुक्षेत्र का महत्व



महाभारत का युद्ध हस्तिनापुर से 185 किलोमीटर दूर लड़ा गया था। इस रक्तरंजित युद्ध के बारे में महाभारत के वनपर्व में इसका उल्लेख मिलता है कि कुरुक्षेत्र में आकर सभी लोग पापमुक्त हो जाते हैं। 
वहीं, नारदपुराण के अनुसार जो लोग कुरुक्षेत्र की धरती पर जन्म लेते हैं, उन्हें फिर अपने कर्मों को चुकाने के लिए फिर से जन्म नहीं लेना पड़ता। भागवतपुराण के प्रथम श्लोक में कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र कहा गया है।
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सिपाही से बाबा बने हत्यारे हरि का साम्राज्य   नारायण हरि साकार।

ढोंगी बाबाओं की श्रृंखला में एक नाम और शुमार हो गया।  नारायण हरि साकार।  यह हत्यारा बाबा रातों-रात नहीं खड़ा हो गया कि एक दिन में इसका सौ करो...