सम्राट अशोक और उनके पिता बिंदुसार के काल में 'आजीवक' काफी फले-फूले. इस संप्रदाय के प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सम्राट अशोक ने बिहार के मखदूमपुर में बाराबरकी की पहाड़ियों में तपस्या के लिए आजीवकों कई गुफाएं बनवा कर दी
ई शिलालेखों और दस्तावेजों से पता लगता है कि इसकी शुरुआत पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुई.

ईसा से 600 साल पहले भारत में कई धर्म और संप्रदाय फल-फूल रहे थे. बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म के अलावा कई ऐसे संप्रदाय थे, जिनका अब नामलेवा नहीं बचा है. उस दौर में इनके अनु यायी की संख्या हजारों में थी. ऐसा ही एक धर्म था ‘आजीवक’. इसकी स्थापना मक्खली गोसाला
ने की, जो गौतम बुद्ध और महावीर के समकालीन थे. उनका जन्म गौशाला में हुआ, इसलिये उन्होंने अपने नाम के साथ गोसाला जोड़ लिया.
किसने की आजीवक धर्म की शुरुआत?
जैन धर्म के कई ग्रंथों में दावा है कि मक्खली गोसाला, महावीर के ही शिष्य थे. किसी बात पर उनका महावीर से मतभेद हुआ. इसके बाद अलग होकर एक नए संप्रदाय की नींव रखी. कई जगह यह दावा भी मिलता है कि आजीवक की स्थापना गोसाला ने नहीं की. बल्कि वे सबसे बड़े लीडर जरूर थे. ‘आजीवक’ की नींव कब रखी गई, इसकी कोई सही जानकारी नहीं है. कई शिलालेखों और दस्तावेजों से पता लगता है कि इसकी शुरुआत पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुई. मौर्य काल में यह अपने चरम पर पहुंचा.
मौर्य काल में चरम पर पहुंचे
सम्राट अशोक और उनके पिता बिंदुसार के काल में ‘आजीवक’ काफी फले-फूले. इस संप्रदाय के प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सम्राट अशोक ने बिहार के मखदूमपुर में बाराबरकी की पहाड़ियों में तपस्या के लिए आजीवकों कई गुफाएं बनवा कर दीं. इन गुफाओं ब्राह्मी लिपि में भी यह बात दर्ज है. कई दस्तावेजों से पता लगता है कि उस दौर में आजीवक को मानने वालों की संख्या जैन अनुयायियों से भी ज्यादा थी.
‘आजीवक’ धर्म थी कि इस संसार की हर चीज भाग्य या नियति द्वारा पूर्व निर्धारित होती है. यानी नियति के अधीन है. इसलिए इंसान कितनी भी कोशिश कर ले, कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है.
आजीवक मानते थे कि हर इंसान की आत्मा धागे की एक गेंद की तरह है, जो लगातार सुलझती जा रही है. हर इंसान को जीवन और मृत्यु के प्रत्येक चक्र का अनुभव करना ही होगा, ठीक उसी तरह जैसे सुख और दुख का अनुभव करते हैं. जब एक बार आत्मा रूपी धागे का गोला पूरी तरह खुल जाएगा, तो उसकी यात्रा समाप्त हो जाएगी. इस तरह आत्मा भी मुक्त हो जाएगी.
जैनियों की तरह नग्न रहते थे आजीवक
आजीवक धर्म के फॉलोअर्स भी जैनियों की तरह कपड़े नहीं पहनते थे. अलग-अलग ग्रुप में भिक्षुओं के रूप में नंगे रहा करते थे. हाथ में डंडा लेकर चलते थे. अर्चना गारोड़िया गुप्ता और श्रुति गारोड़िया इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख में लिखती हैं कि आजीवक बड़ी कठोर तपस्या करते थे. जैसे कीलों पर लेटना, आग से गुजरना, भीषण मौसम का सामना करना. कई बार तपस्या के लिए बड़े मिट्टी के बर्तनों में बंद हो जाते थे.
ऐसी भयानक तपस्या के लिए उनकी आजीवकों का नाम दूर-दूर तक हुआ. तमाम चीनी और जापानी साहित्य में भी इसका जिक्र मिलता है. आजीवक के बीच कोई जातिगत भेदभाव नहीं था. इसलिये हर तरह के लोग इस संप्रदाय के फॉलोअर बने.
अलग शहर बसा लिया था
बौद्ध और जैन धर्म के कई ग्रंथों से पता लगता है कि जिस दौर में आजीवक अपने चरम पर थे, उस वक्त उन्होंने अपना एक अलग शहर बसा लिया था. जिसे सावत्ती कहा जाता था. यह अयोध्या के करीब था. कुछ इतिहासकार दावा करते हैं कि तब का सावत्ती ही अब श्रावस्ती है.
क्यों मिट गया नामोनिशान
आजीवक नियितवाद की बात करते थे. जबकि उस दौर में जो दूसरे धर्म थे वो कर्म और उसके आधार पर फल की बात किया करते थे. ऐसे में आजीवक पर सवाल उठना लाजिमी था. बौद्ध साहित्य से पता चलता है कि गौतम बुद्ध ने ‘आजीवक’ को सबसे खराब जीवन दर्शन बताया. जबकि महावीर ने भी इसकी आलोचना की. बौद्ध और जैनियों का तर्क था कि अगर आजीवक किसी चीज को मानते नहीं तो फिर जप-तप जैसी चीजें क्यों करते हैं?

तो आजीवक (Ājīvika) खत्म कैसे हुए? सम्राट अशोक के जीवन पर लिखे ग्रंथ ‘अशोक अवदनम’ के मुताबिक पुण्यवर्धन नाम के नगर में एक आजीवक भिक्षु गौतम बुद्ध का एक चित्र लिये टहल रहा था. जिसमें उन्हें किसी के कदमों में गिरता दिखाया गया था. जब अशोक को इसकी खबर मिली तो उन्होंने पुण्यवर्धन के सारे आजीवकों को मारने का आदेश दे दिया. कहते हैं कि इस घटना में 18 हजार से ज्यादा आजीवक मारे गए. फिर उत्तर भारत में इनकी संख्या गिनी चुनी रह गई.
आखिर में दक्षिण भारत में बचे थे
आजीवक धर्म के फॉलोअर्स (Ajivikas philosophy) 14वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत में मौजूद रहे. दक्षिण में मौजूद तमाम शिलालेखों से उनकी मौजूदगी का पता लगता है. कई शिलालेखों से इशारा मिलता है कि आखिरी आजीवक दक्षिण भारत के कर्नाटक में रहा करते थे. खासकर कोलार जिले में. कुछ आजीवक तमिलनाडु में भी मौजूद थे तो