मंगलवार, 21 मई 2024

सेना में जाने का टूटा सपना, तो शुरू कर दी ताइवानी फसल की खेती, महीने में 2 लाख इनकम


सेना में जाने का टूटा सपना, तो शुरू कर दी ताइवानी फसल की खेती, महीने में 2 लाख इनकम
सीकर जिले में प्याज के बाद तरबूज की खेती सर्वाधिक मात्रा में होती है. यहां हजारों किसान हैं, जो तरबूज की खेती करते हैं. आज हम आपको सीकर के ऐसे किसान के बारे में बताएंगे, जो मात्र चार महीने में ही लाखों रुपए की कमाई कर चुके हैं.
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 सीकर जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर धोद तहसील के मूंडवाड़ा गांव में युवा किसान रामबाबू और उनके पिता मुरारी लाल स्वामी पिछले 20 साल से तरबूज की खेती करते आ रहे हैं.

सीकर जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर धोद तहसील के मूंडवाड़ा गांव में युवा किसान रामबाबू और उनके पिता मुरारी लाल स्वामी पिछले 20 साल से तरबूज की खेती करते आ रहे हैं.

 रामबाबू स्वामी के पास 40 बीघा जमीन है, जिसमें वे 10 से 15 बीघा में काले ताइवानी व धारी वाले तरबूज की खेती कर मात्र 90 दिन में 6 लाख की कमाई करते हैं. बाकी जमीन पर गेहूं, बाजरा जैसी पारंपरिक फसल आधुनिक तरीके उगाते हैं.

रामबाबू स्वामी के पास 40 बीघा जमीन है, जिसमें वे 10 से 15 बीघा में काले ताइवानी व धारी वाले तरबूज की खेती कर मात्र 90 दिन में 6 लाख की कमाई करते हैं. बाकी जमीन पर गेहूं, बाजरा जैसी पारंपरिक फसल आधुनिक तरीके उगाते हैं.
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 युवा किसान रामबाबू स्वामी ने  बताया तरबूज की खेती के लिए आधुनिक तरीके अपनाते हैं. बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति का प्रयोग करते हैं और फसल में खरपतवार न हो, इसके लिए धोरों को प्लास्टिक से ढ़कते हैं. इन्हीं धोरों के बीच पतली पाइप के जरिए पानी से सिंचाई की जाती है. तरबूज की फसल को पानी की भरपूर आवश्यकता होती है. इसकी वजह से धोरों को प्लास्टिक से ढ़कने के कारण इसमें नमी बनी रहती है और फल को लंबे समय तक पानी मिलता रहता है.

युवा किसान रामबाबू स्वामी ने बताया तरबूज की खेती के लिए आधुनिक तरीके अपनाते हैं. बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति का प्रयोग करते हैं और फसल में खरपतवार न हो, इसके लिए धोरों को प्लास्टिक से ढ़कते हैं. इन्हीं धोरों के बीच पतली पाइप के जरिए पानी से सिंचाई की जाती है. तरबूज की फसल को पानी की भरपूर आवश्यकता होती है. इसकी वजह से धोरों को प्लास्टिक से ढ़कने के कारण इसमें नमी बनी रहती है और फल को लंबे समय तक पानी मिलता रहता है.


 युवा किसान रामबाबू स्वामी ने सीकर के प्रिंस कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक में पॉलिटेक्निक की है. उन्होंने बताया वे फौजी बनकर देश की सेवा करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने 2012 में सीआरपीएफ का एग्जाम दिया था. लेकिन एक नंबर की कमी के कारण एग्जाम रह गया. फिर उन्होंने राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल का एग्जाम दिया, उसमें भी सफलता नहीं मिल पाई.
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युवा किसान रामबाबू स्वामी ने सीकर के प्रिंस कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक में पॉलिटेक्निक की है. उन्होंने बताया वे फौजी बनकर देश की सेवा करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने 2012 में सीआरपीएफ का एग्जाम दिया था. लेकिन एक नंबर की कमी के कारण एग्जाम रह गया. फिर उन्होंने राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल का एग्जाम दिया, उसमें भी सफलता नहीं मिल पाई.

 युवा किसान रामबाबू स्वामी ने सीकर के प्रिंस कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक में पॉलिटेक्निक की है. उन्होंने बताया वे फौजी बनकर देश की सेवा करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने 2012 में सीआरपीएफ का एग्जाम दिया था. लेकिन एक नंबर की कमी के कारण एग्जाम रह गया. फिर उन्होंने राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल का एग्जाम दिया, उसमें भी सफलता नहीं मिल पाई.

युवा किसान रामबाबू स्वामी ने सीकर के प्रिंस कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक में पॉलिटेक्निक की है. उन्होंने बताया वे फौजी बनकर देश की सेवा करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने 2012 में सीआरपीएफ का एग्जाम दिया था. लेकिन एक नंबर की कमी के कारण एग्जाम रह गया. फिर उन्होंने राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल का एग्जाम दिया, उसमें भी सफलता नहीं मिल पाई.


 कई प्रयास के बाद भी रामबाबू फौज में जवान नहीं बन पाए, तो उन्होंने किसान बनने की राह चुनी और सीकर छोड़ अपने गांव वापस आ गए. इसके बाद उन्होंने अपने पिता मुरारी लाल स्वामी के साथ मिलकर खेती में बदलाव किया और आधुनिक तरीके से तरबूज की खेती करने लगे.

कई प्रयास के बाद भी रामबाबू फौज में जवान नहीं बन पाए, तो उन्होंने किसान बनने की राह चुनी और सीकर छोड़ अपने गांव वापस आ गए. इसके बाद उन्होंने अपने पिता मुरारी लाल स्वामी के साथ मिलकर खेती में बदलाव किया और आधुनिक तरीके से तरबूज की खेती करने लगे
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