महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक कुरुक्षेत्र की भूमि पर लड़ा गया था
लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाभारत का 18 दिनों तक चलने वाला युद्ध आखिर क्यों
कुरुक्षेत्र मे ही
लड़ा गया था।
श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र को ही रक्तरंजित युद्ध के लिए क्यों चुना था? आइए, जानते हैं इससे जुड़ी कहानी।

महाभारत के युद्ध का जब भी जिक्र आता है, तो कुरुक्षेत्र की रक्तरंजित भूमि का जिक्र जरूर होता है।
महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक कुरुक्षेत्र की भूमि पर लड़ा गया था। महाभारत काल में कुरुक्षेत्र को कई नामों से जाना जाता है।
कई पुराणों में कुरुक्षेत्र को ब्रह्मवर्त, थानेसर, स्थानेश्वर नामों से भी जाना जाता है।
महाभारत में कुरु को पांडवों और कौरवों का वंशज तथा पांडु का पूर्वज बताया गया है, जिस पर कुरुक्षेत्र का नाम रखा गया। आमतौर पर सभी लोगों के मन में सवाल आता है कि श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए आखिर कुरुक्षेत्र की भूमि को ही क्यों चुना।
आइए, जानते हैं-
महाभारत के युद्ध के लिए श्रीकृष्ण ने पूरे भारत में कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना, इससे जुड़ी घटना जानकर हर इंसान की आत्मा कांप जाती है
दो भाईयों के बीच रक्तरंजित युद्ध
महाभारत से जुड़ी एक पौराणिक कहानी के अनुसार जब पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध की घोषणा हुई, तो भगवान श्रीकृष्ण ने अपने कई दूतों को कई जगहों पर भेजा और महाभारत के युद्ध के लिए कोई भूमि ढूंढ़ने के लिए कहा।
श्रीकृष्ण जानते थे कि महाभारत का युद्ध बहुत ही भीषण और रक्तरंजित होने वाला है, इसलिए उन्हें ऐसी भूमि की तलाश थी, जो युद्ध की क्रूरता को सह सके। ऐसे में कई दूतों ने श्रीकृष्ण को कई जगहों के बारे में बताया लेकिन उनमें से एक दूत जब श्रीकृष्ण के पास आया, तो वे बहुत उदास और अत्यंत पीड़ा में था।
दूत ने श्रीकृष्ण को बताई कुरुक्षेत्र की कहानी

जब श्रीकृष्ण ने दूत को इतनी दयनीय अवस्था में देखा, तो उन्होंने दूत से इसका कारण पूछा।
दूत ने कुरुक्षेत्र में घटी एक घटना बताई, जिसके अनुसार दो भाइयों के बीच खेत में मेड़ बनाने को लेकर झगड़ा था। दोनों ने एक खेत में बंटवारा किया हुआ था।
सिंचाई का पानी ज्यादा न पहुंचे, इसलिए दोनों ने बीच में मेड़ बनाई हुई थी। एक दिन यह मेड़ टूट गई, जिससे दोनों भाइयों के बीच लड़ाई हो गई। धीरे-धीरे यह लड़ाई इतनी ज्यादा बढ़ गई कि दोनों भाइयों के बीच हाथापाई होने लगी।
मार-पीट इतनी रक्तरंजित युद्ध में बदल गई कि बड़े भाई ने छोटे भाई की हत्या कर दी और उसके शव को घसीटकर मेड़ बनाने की जगह पर रखकर उससे ही सिंचाई का पानी रोक दिया। इस
सच्ची कहानी को सुनकर श्रीकृष्ण भी पीड़ा से भर गए
जब श्रीकृष्ण ने दूत की बताई यह कहानी सुनी, तो उन्होंने बहुत पीड़ा हुई लेकिन उन्होंने समय को देखते हुए कहा कि जिस भूमि पर भाई-भाई के बीच इतना द्वेष है।
वह स्थान युद्ध के लिए सही है क्योंकि यहां की भूमि में ही इतनी कठोरता है कि चाहकर भी किसी का मन द्रवित नहीं हो सकता। श्रीकृष्ण को इस बात की शंका थी कि कहीं पांडव कौरवों के दबाव में आकर कोई संधि न कर लें, इसलिए महाभारत का युद्ध अनिवार्य बन गया था क्योंकि इस युद्ध से बड़ा बदलाव जुड़ा हुआ था।
इस कारण श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की भूमि को युद्ध के लिए चुना।
कुरु भूमि को माना गया न्याय का प्रतीक
कुरुक्षेत्र की रक्तरंजित भूमि को महाभारत के युद्ध के लिए चुने जाने से जुड़ीं कई अन्य कहानियां भी हैं लेकिन यह कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित है।
कुरुक्षेत्र की भूमि पर इतना भीषण रक्तरंजित युद्ध हुआ था, इस बारे में जब श्रीकृष्ण से देवताओं ने सवाल किया कि इस भूमि पर कौन ही बसना चाहेगा और युगों-युगों तक इस भूमि को किसी काल की तरह देखा जाएगा, जिसने एक साथ लाखों मानवों का रक्त पिया हो।
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की भूमि को शाप मुक्त करने के लिए यज्ञ करने का तरीका बताया और कहा कि कुरुक्षेत्र में आकर जो भी सच्चे मन से अपने पूर्वजों का तर्पण करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी क्योंकि इस भूमि पर न्याय और अन्याय के बीच युद्ध हुआ था।
इसी कारण से यह भूमि अन्याय की समाप्ति के लिए याद रखी जाएगी।
महाभारत के वनपर्व के अनुसार कुरुक्षेत्र का महत्व
महाभारत का युद्ध हस्तिनापुर से 185 किलोमीटर दूर लड़ा गया था। इस रक्तरंजित युद्ध के बारे में महाभारत के वनपर्व में इसका उल्लेख मिलता है कि कुरुक्षेत्र में आकर सभी लोग पापमुक्त हो जाते हैं।
वहीं, नारदपुराण के अनुसार जो लोग कुरुक्षेत्र की धरती पर जन्म लेते हैं, उन्हें फिर अपने कर्मों को चुकाने के लिए फिर से जन्म नहीं लेना पड़ता। भागवतपुराण के प्रथम श्लोक में कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र कहा गया है।

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